आज देश भर में चर्चा का विषय बन चुके पर्यावरणविद् और समाजसेवी सोनम वांगचुक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। वो वही सोनम वांगचुक हैं, जिनका सपना था लद्दाख को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाना… जिनकी शिक्षा की सोच ने हज़ारों बच्चों का भविष्य बदला… और जिनके “आइस स्तूप” जैसे अनोखे प्रयोगों ने पूरी दुनिया में भारत का नाम ऊँचा किया।
लेकिन आज उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया गया।
क्यों? क्योंकि लद्दाख में चल रहे राज्य का दर्ज़ा और छठे शेड्यूल की मांग वाले आंदोलन को लेकर सरकार ने सीधे-सीधे वांगचुक को हिंसा भड़काने का दोषी ठहरा दिया।
असलियत यह है कि—
👉 पिछले कुछ दिनों से लद्दाख में भारी विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे।
👉 आंदोलन में हिंसा भी भड़की और चार लोगों की मौत हो गई।
👉 इसी पृष्ठभूमि में वांगचुक को आज दोपहर 2:30 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी थी… लेकिन उससे पहले ही उन्हें पुलिस ने हिरासत में ले लिया।
अब सवाल यह उठता है—
क्या यह गिरफ्तारी सचमुच कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए है,
या फिर यह आवाज़ दबाने की कोशिश है?
वांगचुक का कहना है कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
उनकी संस्था का FCRA लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया है।
और पूरे लद्दाख में कर्फ्यू जैसे हालात बने हुए हैं।
आज हर एक भारतीय को यह सोचने की ज़रूरत है कि—
👉 क्या अपने हक़ की आवाज़ उठाना गुनाह है?
👉 क्या एक शिक्षक, वैज्ञानिक और पर्यावरण योद्धा को दोषी ठहराकर समस्या का हल निकाला जा सकता है?
👉 या फिर यह मामला सिर्फ और सिर्फ एक संवेदनशील राज्य की आवाज़ को कुचलने का प्रयास है?
🌍 सोनम वांगचुक केवल लद्दाख की आवाज़ नहीं हैं… वे भारत की अंतरात्मा की आवाज़ हैं।
उनकी गिरफ्तारी ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—
क्या हम उस देश में रह रहे हैं जहाँ सच बोलने की कीमत जेल है
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आप इस घटना को किस नज़रिए से देखते हैं?
क्या वांगचुक दोषी हैं या फिर उन्हें राजनीतिक दबाव का शिकार बनाया गया है?
कमेंट में अपनी राय ज़रूर लिखिए।
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